Posts

पारिजात

'पारिजात, तूम अब भी स्मृतियों में ठीक उसी तरह मेरे मन को प्रफुल्लित करते हो जैसे रात्रि के अंतिम पहर में तुम फूलो से मेरे आँगन को अपनी सुगंध से भर दिया करते थे...

पातालपानी

.रात के करीब ८ बज रहे होगे. किसी ने दरवाजा खटखटाया, देखा तो सामने लोकेन्द्र खडा था. उसे देख कर अच्छा लगा क्योकिं बाकी दोनों दोस्तों से मेरी बातचीत बंद थी. और इन तीनो के अलावा और कोई दोस्त नहीं था. हॉस्टल में ये पहला साल था, और पहली बार घर से दूर हुआ था, ऐसा ही कुछ मेरे बाकी दोस्तों का भी हाल था, लेकिन अच्छे  दोस्तों की संगत में कभी ये कमी नहीं खली. लोकेन्द्र ने कहा की हम सभी पातालपानी [famous waterfall near Indore] घुमने का प्लान बना रहे है, बस तुम्हारी कमी है. चूँकि लोकेन्द्र हमारे बीच संवाद वाहक की तरह था. और बाहर पिकनिक पर जाने की हम सबकी पहली योजना थी और मैं भी ये मौका खोना नहीं चाहता था. सो मैंने भी हाँ कह दिया.    आज १ जनवरी थी. साल की शुरुआत काफी खुशनुमा ढंग से करने की चाहत थी. इसलिए हम सुबह फटाफट तैयार हो गए. पदम, आशीष, लोकेन्द्र, और मैं, हम सभी रेलवे स्टेशन की और चल पड़े. ठण्ड का मौसम था और चारो तरफ धुंध-कोहरा छाया हुआ था. इस गुलाबी ठण्ड में हम जो कुछ महसूस कर रहे थे वो हम सब के लिए बहुत ही यादगार था. रेलवे स्टेशन महज १ किलोमीटर  की दूरी पर था. हंसते-गाते, शरारत करते हम ९ बजे त

002

"कुछ ऐसा था जो कहीं गुम  है, रात का वो आखिरी पहर था शायद और छत पर बिखरे तारे भी! आधी रात जो दबे पाँव आकर उन बिखरे तारों को चुना करता था; नहीं देखा है उसे कई दिनों से। वो फक्कड़ सा, अलमस्त रहने वाला लड़का, कहीं चला गया है डोर शायद...", - चाँद ने चुपके से तारों से कहा।  "यहीं छत की मुंडेर पर बैठकर अक्सर आसमाँ में कुछ तका करता था वो। शायद अपने घर की ओर जाती गलियों को याद किया करता होगा?! और ढूंढा करता था आसमान में उस तारे को जिसे वो अपने घर की छत से देखा करता होगा। ख्वाइशें ज्यादा नहीं थी उसकी; बस, गलियों में फिर से अपने दोस्तो के संग हो लेने भर की चाहत थी उसकी।"- ये बात तारों ने चाँद को बतायी। "उस रात जब चाँद नही था आसमाँ में और सिर्फ तारे ही तारे थे वहां। उस घुप्प अंधेरे में कहीं से सिसकियों की आवाज़े सुनायी दी। दिन के उजाले में दिखाई देने वाला अक्स कुछ और ही बयाँ कर रहा था। छत के इसी कोने में कल रात देर तक रोता रहा वो। कुछ बुदबुदाया भी था उसने, तारो की और तकते हुए। कोई बात थी जेहन में उसके जो देर बाद उफ़न के आज बाहर आसुंओ में बह पड़ी हो जैसे। तारों को देख के कभी खुद

001

It was midnight and the moon is partly hide in the clouds and it was shining on its full and the  roof's floor was looking milky. Cool breeze shivers down. Morning Star was twinkling just at the corner of the moon and it was looking so brighter that you could talk with. Yeah, it winters. And I was welcoming it.  Among all these, I see the big bats flying towards the East. 

Beautiful Evening Beneath Mounts

Image
click over image to see it crystal clear

माय फ्रेंड एंड अदर एनिमल्स

हाई स्कूल के समय मेरा रुझान पर्यावरण की और हुआ जो हायर सेकंडरी मे आकर और अधिक बढ़ गया। दीपक के आने के बाद ये रूचि और विस्तृत हुई क्योंकि जंतु जगत से मेरा परिचय उसी ने कराया था। दीपक की इन चीजो मे काफी रूचि थी। दीपक जीवो के बारे मे उस समय हमसे कहीं अधिक जानता था। उसने मुझे केचुओं के बारे मे बताया की ये किस तरह जमीन के भीतर रहकर मिट्टी खाते है और उसे ह्यूमस मे बदलते है। बारिश के दिनों मे हमारे बंगले के बगल वाली जगह मे ढेरो केचुएं मिलते थे जिन्हें दीपक, सुमित और मैं मिलकर पकड़ा करते थे। उस गीलगीले जीव को पहली बार हाथ मे लेने पर झिझक आई लेकिन जीव प्रेम से ये अनुभव आसान रहा। इसके बाद तो केचुएं मानो हमारे दोस्त बन गए हो! वहां सबसे बड़ा केचुआं लगभग 15 सेंटीमीटर से भी लंबा रहा होगा जो एक शाम को क्यारी मे रेंगता हुआ मिला। दीपक ने एक प्लास्टिक के डिब्बे मे तितलियों के लार्वा रखे थे जिनमे से कुछ ने डिब्बे के ढक्कन पर प्यूपा लटका रखा था। ये मेरा पहला अनुभव था जब मैने इस तरह की चीज देखी। दीपक ने  अपनी छत पर लगे अकाव के पत्तो के नीचे लटके और भी प्यूपा दिखाए तब मैंने जाना कि तितली मे रूपांतरण की चार अव