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"कुछ ऐसा था जो कहीं गुम है, रात का वो आखिरी पहर था शायद और छत पर बिखरे तारे भी! आधी रात जो दबे पाँव आकर उन बिखरे तारों को चुना करता था; नहीं देखा है उसे कई दिनों से। वो फक्कड़ सा, अलमस्त रहने वाला लड़का, कहीं चला गया है डोर शायद...", - चाँद ने चुपके से तारों से कहा।
"यहीं छत की मुंडेर पर बैठकर अक्सर आसमाँ में कुछ तका करता था वो। शायद अपने घर की ओर जाती गलियों को याद किया करता होगा?! और ढूंढा करता था आसमान में उस तारे को जिसे वो अपने घर की छत से देखा करता होगा। ख्वाइशें ज्यादा नहीं थी उसकी; बस, गलियों में फिर से अपने दोस्तो के संग हो लेने भर की चाहत थी उसकी।"- ये बात तारों ने चाँद को बतायी।
"उस रात जब चाँद नही था आसमाँ में और सिर्फ तारे ही तारे थे वहां। उस घुप्प अंधेरे में कहीं से सिसकियों की आवाज़े सुनायी दी। दिन के उजाले में दिखाई देने वाला अक्स कुछ और ही बयाँ कर रहा था। छत के इसी कोने में कल रात देर तक रोता रहा वो। कुछ बुदबुदाया भी था उसने, तारो की और तकते हुए। कोई बात थी जेहन में उसके जो देर बाद उफ़न के आज बाहर आसुंओ में बह पड़ी हो जैसे। तारों को देख के कभी खुद को कोसता रहा तो कभी तारों को बददुआएँ देता रहा। गाल पे ढलके आंसुओ को पोछकर जाने कब वो चला गया रात के उस आखिरी पहर में", - तारों ने ये कहानी चाँद को सुनायी।
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